राष्ट्रीय आंदोलन, अधिवेशन और सम्मेलन
फॉरवर्ड ब्लाक का गठन→1 मई 1939 ई.
1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 22 जून के ही दिन ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन→मई 1934 ई. वर्ष 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन के बाद स्वतंत्रता आंदोलन के कमजोर पड़ने की आशंका जतायी जा रही थी जो आगे चल कर निराधार साबित हुई़ वैचारिक मतभेद की धरातल ने अंतत: 17 मई 1934 को कांग्रेस के ही एक घड़े को सोशलिस्ट पार्टी बनाने को प्रेरित कर दिया़
तृतीय गोलमेज सम्मेलन→ 1932 में पुनः एक गोलमेज सम्मेलन लंदन में हुआ. जो 17 नवम्बर से 24 दिसम्बर 1932 तक हुआ था। इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था। तीनों सम्मेलनों के दौरान इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड था। इस सम्मेलन के समय भारत के सचिव सेमुअल होर थे। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले सदस्यों की कुल संख्या 46 थी सरकार विरोधी लोगों को तृतीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल नहीं किया गया-
पूना पैक्ट→सितंबर 1932 ई पूना पैक्ट अथवा पूना समझौता भीमराव आम्बेडकर एवं महात्मा गांधी के बीच पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में 24 सितम्बर, 1932 को हुआ था पुणे की यरवदा जेल में बंद महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) के बीच दलितों के अधिकार और उनके हितों की रक्षा के लिए पूना पैक्ट हुआ था.
कम्युनल अवार्ड (साम्प्रदायिक पंचाट)→16 अगस्त 1932 ई 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डोनल्ड ने साम्र्पदायिक पंचाट की घोषणा की जिसमें दलितो सहित 11 समुदायों को पृथक निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया।
कहा जाता है कि दलित मुद्दों पर अंबेडकर के गांधीजी से मतभेद रहे हैं। पत्रिका 'हरिजन' के 18 जुलाई, 1936 के अंक में अंबेडकर के 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट' की समीक्षा में गांधीजी ने जोर दिया था कि हर किसी को अपना पैतृक पेशा जरूर मानना चाहिए, जिससे अधिकार ही नहीं, कर्तव्यों का भी बोध हो। यह सच्चाई है कि ब्रिटिश शासन के डेढ़ सौ वर्षों में भी अछूतों पर होने वाले जुल्म में कोई कमी नहीं आई थी, जिससे अंबेडकर आहत थे। लेकिन धुन के पक्के अंबेडकर ने गोलमेज कॉन्फ्रें स में जो तर्क रखे, वो इतने ठोस और अधिकारपूर्ण थे कि ब्रिटिश सरकार तक को उनके सामने झुकना पड़ा और 1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्जे मैक्डोनल्ड ने अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व के लिए एक तात्कालिक योजना की घोषणा की जिसे कम्युनल अवार्ड के नाम से जाना गया।
गांधी-इरविन समझौता→5 मार्च 1931 ई. महात्मा गांधी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता किया गया था. 5 मार्च 1931 को यह राजनीतिक समझौता किया गया था, जिसे गांधी-इरविन समझौता के रूप में जाना जाता है.