30 May, 2021

भारत का भूगोल, भारत की प्रमुख मिट्टियां,रियो सम्मेलन के क्या परिणाम

रियो डी जेनेरे पृथ्वी सम्मेलन
जून 1992 में 100 से भी अधिक राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन में एकत्रित हुए। इसका आयोजन पर्यावरण संरक्षण तथा सामाजिक आर्थिक विकास की समस्याओं का हल ढूंढने के लिए सम्मेलन में एकत्रित बताओ ने भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन और जैविक विविधताओं पर एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। भूमंडलीय वंश धांतो पर सहमति जताई पोषणीय विकास के लिए एजेंडा 21 को स्वीकृति प्रदान की। एजेंडा 21 जून 1992 एक घोषणा है 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (UNCED) के तत्वाधान में राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा स्वीकृत किया गया था जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्पारिक आवश्यकता एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरण क्षति गरीबी और रोगों से निपटना है एजेंडा 21 का मुख्य उद्देश्य है कि प्रत्येक निकाय अपना एजेंडा 21 तैयार करें। राष्ट्रीय वन नीति 1952 राष्ट्रीय वन नीति 1952 द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33% भौगोलिक क्षेत्र वंछित है । 

मृदा का वर्गीकरण 
जलोढ़ मृदा विस्तृत रूप से फैली है यह महत्वपूर्ण मृदा है संपूर्ण उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है जलोढ़ मृदा हिमालय की तीन महत्वपूर्ण नदी तंत्र सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाए गए निछेपों से बनी है यह मृदा राजस्थान और गुजरात तक फैली है एक सक्रिय गलियारे के रूप में पूर्वी तटीय मैदान विशेषकर महानदी , गोदावरी , कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा भी जलोढ़ मिट्टी से बने हैं जलोढ़ मिट्टी में सिल्ट , रेत और मृतिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं जलोढ़ मृदा दो प्रकार की होती है पुराना जालोंढ़ (बांगर)कहलाता है नया जरूर खादर कहलाता है
 उपयोगिता: –गन्ने चावल गेहूं तथा अन्य अनाजों और दलहनी फसलों की खेती की जाती है जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है अधिकता जलोढ़ मृदा में पोटाश फास्फोरस और चूना युक्त होती है अधिक उपजाऊ होने के कारण यहां कृषि अधिक की जाती है तथा यहां जनसंख्या भी अधिक होती है

काली मिट्टी इन मिट्टी का रंग काला है और रे रेगर मृदा ए भी कहा जाता है काली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयोगी समझी जाती है काली मिट्टी कपास मिर्धा के नाम से भी जानी जाती है दक्कन पठार(बेसाल्ट )क्षेत्र के उत्तर पश्चिमी भागों में पाई जाती है और लावा जनक सालों से बनी है यह मिट्टियां महाराष्ट्र ,सौराष्ट्र, मालवा दक्षिणी पूर्वी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार पर पाई जाती हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा गोदावरी और कृष्णा नदियों की घाटियों तक फैली हैं। काली मिट्टी में कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम,पोटाश और चूने जैसे पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण होती है

लाल और पीली 
मिट्टी लाल मिट्टी दक्कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में रवेदारर आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले भागों में विकसित हुई है उड़ीसा ,छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश, गंगा के मैदान के दक्षिणी छोर पर और पश्चिम घाट में पहाड़ी पर पाई जाती है इन मिट्टियों का लाल रंग दावेदार आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में लोहा धातु के प्रसार के कारण होता हैंं

लेटेराईट मिट्टी 
लेटेराईट शब्द ग्रीक भाषा के लेटर ईट से लिया गया है लेटराइट मिर्धा तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है यह भारी वर्षा से निलाछन का परिणाम है इस मिट्टी में उमस की मात्रा कम पाई जाती है अत्यधिक तापमान के कारण जैविक पदार्थों को अपघटित करने वाले बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं लैटेराइट मिट्टी पर अधिक मात्रा में खाद और रासायनिक उर्वरक डालकर ही खेती की जा सकती है। लेटराइट मिट्टी कर्नाटक, केरल ,तमिलनाडु ,मध्य प्रदेश और उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है। मृदा संरक्षण की उचित तकनीक अपनाकर इन मिट्टियों पर कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु में चाय और कॉफी उगाई जाती है इन मिट्टी में काजू तथा तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश की लाल लेटराइट मिट्टी काजू की फसल के लिए अधिक उपयुक्त है।
पर्वतीय मिट्टी















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