बड़े खेतों को पट्टियों में बांधा जाता है फसलों के बीच में घास की पट्टियां उगाई जाती हैं यह पवनों द्वारा जनित बलों को कमजोर करती हैं इस तरीके को पट्टी कृषि (strip Farming) फार्मिंग कहते हैं।
हिमालय yew यव (चीड़ की प्रकार का सदाबहार वृक्ष )
यह एक ऑल दिए वादा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्र में पाया जाता है पेड़ की छाल,पत्तियां,टहनियां और जड़ों से टक्सौल नामक रसायन निकाला जाता है तथा कुछ कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
1960 और 1970 के दशक के दौरान पर्यावरण संरक्षको ने राष्ट्रीय वन्य जीवन सुरक्षा कार्यक्रम की मांग की। भारतीय वन्य जीवन रक्षण अधिनियम 1972 में लागू किया गया बाद में केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव विहार स्थापित किए।
प्रोजेक्ट टाइगर
टाइगर विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है इसकी शुरुआत 1973 में हुई शुरुआत में इसमें बहुत सफलता प्राप्त हुई।
कुछ टाइगर रिजर्व में निम्नलिखित है
• कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड
• सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल
• बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश
• सरिस्का वन्य जीव पशु विहार राजस्थान
• मानस बाग रिजल्ट असम
• पेरीयार बाघ रिजर्व केरल
वन्यजीव अधिनियम 1980 और 1986 इसके अनुसार सैकड़ों तितलियों,पतंगो, भृंगो और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया। 1991 में पौधों की भी 6 जातियां पहली बार इस सूची में रखी गई
• राजस्थान के अलवर जिले में 5 गांवो के लोगों ने तो 12 सौ हेक्टेयर वन भूमि भैरव देव डाकव सेंचुरी घोषित कर दी जिसके अपने ही कानून नियम हैं
• छोटा नागपुर ( झारखंड ) क्षेत्र में मुंडा और संथाल जनजाति महुआ और कदम के पेड़ों की पूजा करते हैं।
• बिहार और उड़ीसा की जनजातियां शादी के दौरान इमली और आम के पेड़ की पूजा करती हैं तथा कुछ लोग हम में से पीपल तथा वट वृक्ष को पवित्र मानते हैं।
• राजस्थान में बिश्नोई गांव के आसपास काले हिरण चितकारा,नीलगाय और मोरों के झुंड देखे जा सकते हैं।
• हिमालय में चिपको आंदोलन वन कटाई को रोकने में सफल रहा।
• टिहरी में किसानों का बीज बचाओ आंदोलन और नव दानप ने दिखाया की रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध फसल उत्पादन द्वारा आर्थिक रूप से व्यवहर्य कृषि उत्पादन संभव है।
नदी बहुउद्देशीय परियोजना तथा बांध
बांध को बहुउद्देशीय परियोजनाएं भी कहा जाता है जहां जल के अनेक उपयोग होते हैं।
सतलुज ब्यास बेसिन में भाखड़ा नागल परियोजना जल विद्युत उत्पादन तथा सिंचाई दोनों के काम में आती है
महानदी बेसिन में हीराकुंड परियोजना जल संरक्षण और बाढ़ नियंत्रण का समन्वय हैं।
• ईशा० से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रंग बेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र को बनाया गया था
• कलिंग (उड़ीसा), नागार्जुन ,कोंडा (आंध्र प्रदेश) कर्नाटक और कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र होने के सबूत मिलते हैं।
• अपने समय की सबसे कृत्रिम जिलों में से एक भोपाल जेल 11वीं शताब्दी में बनाई गई।
• बड़े आकार वाली जिलों को समुंदर कहा जाता है जैसे:– कैस्पियन, मृत तथा अरल सागर
कृष्णा गोदावरी नदी विवाद
कृष्णा गोदावरी की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के लिए बांध बनाकर जल की दिशा परिवर्तन कर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ती जताए जाने से हुई इससे इन राज्यों में पड़ने वाली निचले हिस्से में जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि उद्योगों पर विपरीत पर विपरीत असर पड़ेगा।
छत वर्षा संग्रहण
• मेघालय की राजधानी शिलांग में छत वर्षा संग्रहण प्रचलित है यह रोचक इसलिए है क्योंकि चेरापूंजी और मौसिनराम जहां विश्व की सबसे अधिक वर्षा होती है शिलांग से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर स्थित है और यह शहर पीने की जल की कमी की गंभीर समस्या का सामना करता है शहर के लगभग हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था है घरेलू जल आवश्यकता की कुल मांग के लगभग 15.25 % हिस्से की आपूर्ति छत जल संग्रहण व्यवस्था से होती है
• कर्नाटक के मैसूर जिले में स्थित एक सुदूर गांवों में ग्रामीणों ने अपने घर में जल आवश्यकता पूर्ति छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की हुई है गांव के लगभग 200 घरों में यह व्यवस्था है।
लवण मृदा ( ऊसर मृदा)
लवण मृदा में सोडियम पोटेशियम और मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है यह अनु उर्वर होती हैं इनमें नाइट्रोजन तथा चूने की कमी होती है लवण में मृदाओं का विकास अधिकतर पश्चिमी गुजरात , पूर्वी तट के डेल्टाओ और पश्चिमी बंगाल के सुंदरबन डेल्टा और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र में पाई जाती है
- लवर की समस्या से निपटने के लिए जिप्सम डालने की सलाह दी जाती है
- भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना 1993 में रियो डी जेनेरो ,ब्राजील में भू शिखर सम्मेलन और मई 1994 में याकोहोमा जापान में आपदा प्रबंधन पर विश्व संगोष्ठी आदि विभिन्न स्तर पर इस दिशा में उठाए जाने वाले ठोस कदम है।
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